बहुत दिनों पहले विश्वविद्यालय पार्क में एक लड़के -लडकी को साथ साथ पढाई करते देखा था. बड़ा अच्छा लगा. आज की मतलबी दुनिया और बदलते रिश्तो के बीच यर रिश्ता कुछ अनोखा था. किसी ने बताया वे दोनों सिविल्स की तयारी में लगे थे. और अच्छा लगा. जहा आम बॉय -फ्रेंड गर्ल फ्रेंड पार्को में एक दुसरे को छूने और चूमने की कोशिशे करते दिखाई देते हैं, वह एक दुसरे को पढाई के लिए प्रेरित करते यह जोड़ा मन को भा गया.
पता चला एक साल बाद लड़का आईएस बन गया पद लड़की कुछ ख़ास नहीं कर पायी. और फिर लड़के ने जो बिहार के किसी धनाढ्य परिवार का था, खूब दहेज़ लेकर कही और शादी कर ली, पर जाते जाते अपनी गर्ल फ्रेंड को एक ब्लेक बेर्री मोबाइल गिफ्ट करता गया.
प्यार का ये अंदाजे अंजाम कुछ नया था. क्या ये मोबाइल उन तमाम भावनाओ का कोम्पेंसेसन था जो उनके बीच प्रेरणा स्त्रोत का काम करता था? क्या लड़की के लिए इतना आसान रहा होगा सब कुछ भुला के प्यार के उन वादों की चिता पर ब्लेक बेर्री को सजाना.
जो भी हो भाई लोग, इतना तो समझ आ ही गया होगा की आजकल इमोशन से ज्यादा पैसा महत्व रखता है. अब वो ज़माना नहीं रहा की प्यार के खातिर लोग जान दे दें. काश हीर रांझा, शीरी-फरहाद और अनारकली और सलीम ने भी माडर्न ज़माने के खयालात अपनाये होते और एक दुसरे के लिए जान न दी होती..
सो प्यार कीजिये, कसमे वादे भी क्योकि ये तो इश्क का तकाज़ा है...बस जब निभाने की बारी आये तो एक ब्लेक्बेर्री लीजिये ओउर अपनी माशूका को कहिये -- डार्लिंग हम तो तुम्हारे हो न सके पर इस मोबाइल को तुम अपना समझना ....और सारी बाते, प्यार मुहब्बत इसके पतले स्लीक और ख़ूबसूरत डिजाईन को समर्पित कर देना..
Kehte Hain ki shaadi insaan ki kismat badal deti hai, yahan tak kai baar insaan ko us mukam tak pahuncha deti hai jahan tak wo kabhi nahi pahunch pata, khair ye to kismmat ki baate hoti hai....agar aap me se koi apna article is blog pe likna chahte hai to please aap apna article hame mail karen..raghubar1@gmail.com Hame behad khusi hogi aapke dwara liki gayi kisi post ko publish karne me. Dhanyawad
Wednesday, April 27, 2011
Monday, April 18, 2011
टूटते रिश्तो का सच
नयी दिल्ली १८ अप्रैल,
योनाकर्षण जहाँ दिलों को जोड़ सकता है वही रिश्तो को तोड़ भी सकता है-- ऐसा ही कुछ नज़ारा नजर आया आज नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर. दो तथाकथित पति-पत्नी चीत्कार कर एक दुसरे के प्रति भौंडा प्रेम प्रदर्शित कर रहे थे ओउर पोलिसे ओउर दुनिया को ये जताने की कोशिश कर रहे थे की उनका प्रेम सच्चा है.
दिलवालों की दिल्ली में रेलवे प्लात्फोर्म पर अटूट प्रेम का प्रदर्शन करने वाला यह जोड़ा अश्वलील हरकते करने के कारण ट्रेन से नीचे उतार दिया गया था. सूत्रों के अनुसार, ये लोग घर से भागे हुए प्रेमी थे ओउर अपने नाजायज़ रिश्ते को छुपाने के लिए एक दुसरे को पति-पत्नी बता रहे थे.
पोलिसे के अनुसार, अपने आप को बिहार के कटिहार जिले का बताने वाले इस जोड़े -- सोनू ओउर मोनू दोनों ने शराब पी राखी थी ओउर पूछे जाने पर हर बार अपने बारे में नयी कहानी बता रहे थे. जहा पुरुष अपने आप को श्रधानंद कॉलेज का प्रोफेस्सर बता रहा था, वही ओउरत जो काफी पढ़ी लिखी लग रही थी, यह द्साबित करने में लगी थी की वे दोनों तलाकशुदा थे ओउर आपस में उनकी शादी को सम्माज में मंजूरी नहीं मिलने के कारण घर से भागने को मजबूर थे
हालाँकि हालात को मद्देनजर रखते हुए यह कहा जा सकता है की इस तथाकथित प्रेमी जोड़े का सारा बयान झूठा ओउर मनगढ़ंत लग रहा था. मामला दरअसल नाजायज रिश्ते का लग रहा था जहा दोनो ने अपने अपने परिवार की मर्यादा ओउर प्रतिष्ठा को छोड़ नाजायज़ सम्बन्ध स्थापित कर लिया था जिसे बचने के चक्कर में आज वे स्टेशन पर भीख मांगने को मजबूर थे.
भारत जैसे देश में जहा शादी एक पवित्र बंधन माना जाता है , यौनाकर्षण का ये घिनौना रूप समाज की विडम्बना ही कही जा सकती है. प्रगतिशीलता ओउर आधुनिकीकरण के इस दौड़ में हम पाश्चात्य सभ्यता को अपनाये जा रहे है ओउर अपने मौलिक एवं नैतिक मूल्यों को जाने कहा छोड़ते जा रहे है, यह एक गंभीर चिंता का विषय है.
Sunday, April 17, 2011
हिंदू विवाह पद्धति का विवेचन
आधुनिक विश्व में विवाह अब अनगिनत विकल्पों और समझौतों का विषय बन गया है. लड़का और लड़की एक-दूसरे को पसंद करते हैं और स्वेच्छापूर्वक संविदा में पड़ते हैं. उनके मध्य हुए समझौते की इति विवाह-विच्छेद या तलाक में होती है. लेकिन पारंपरिक हिन्दू विवाह पद्धति में विकल्पों या संविदा के लिए कोई स्थान नहीं है. यह दो परिवारों के बीच होनेवाला एक संबंध था जिसे लड़के और लड़की को स्वीकार करना होता था. इसके घटते ही उन दोनों का बचपना सहसा समाप्त हो जाता और वे वयस्क मान लिए जाते. इसमें तलाक के बारे में तो कोई विचार ही नहीं किया गया था.
बहुत से नवयुवक और नवयुवतियां पारंपरिक हिन्दू विवाह पद्धति के निहितार्थों और इसके महत्व को समझना चाहते हैं. आमतौर पर वे इसके बहुत से रीति-रिवाजों को पसंद नहीं करते क्योंकि इनका गठन उस काल में हुआ था जब हमारा सामाजिक ढांचा बहुत अलग किस्म का था. उन दिनों परिवार बहुत बड़े और संयुक्त होते थे. वह पुरुषप्रधान समाज था जिसमें स्त्रियाँ सदैव आश्रितवर्ग में ही गिनी जाती थीं. आदमी चाहे तो एक से अधिक विवाह कर सकता था पर स्त्रियों के लिए तो ऐसा सोचना भी पाप था. लेकिन इसके बाद भी पुरुषों पर कुछ बंदिशें थीं और वे पूर्णतः स्वतन्त्र नहीं थे: वे अपने परिवार और जातिवर्ग के नियमों के अधीन रहते थे. विवाह पद्धति के संस्कार अत्यंत प्रतीकात्मक थे और उनमें कृषि आधारित जीवनप्रणाली के अनेक बिंब थे क्योंकि कृषि अधिकांश भारतीयों की आजीविका का मुख्य साधन था. उदाहरण के लिए, पुरुष को कृषक और स्त्री को उसकी भूमि कहा जाता था. उनके संबंध से उत्पन्न होनेवाला शिशु उपज की श्रेणी में आता था. आधुनिक काल की महिलाओं को ऐसे विचार बहुत आपत्तिजनक लग सकते हैं.
हमारे सामने आज एक समस्या यह भी है कि हिन्दू विवाह का अध्ययन करते समय मानकों का अभाव दिखता है. प्रांतीयता और जातीयता के कारण उनमें बहुत सी विविधताएँ घर कर गयी हैं. राजपूत विवाह और तमिल विवाह पद्धति में बहुत अंतर दिखता है. मलयाली हिन्दू विवाह अब इतना सरल-सहज हो गया है कि इसमें वर और वधु के परिजनों की उपस्थिति में वर द्वारा उसकी भावी पत्नी के गले में एक धागा डाल देना ही पर्याप्त है. इस संस्कार में एक मिनट भी नहीं लगता, वहीं दूसरी ओर शाही मारवाड़ी विवाह को संपन्न होने में कई दिन लग जाते हैं. इसी के साथ ही हर भारतीय चीज़ में बॉलीवुड का तड़का लग जाने के कारण ऐसे उत्तर-आधुनिक विवाह भी देखने में आ रहे हैं जिनमें वैदिक मंत्रोच्चार के बीच शैम्पेन की चुस्कियां ली जातीं हैं पर ज्यादातर लोगों को यह नागवार गुज़रता है.
परंपरागत रूप से, विवाह का आयोजन चातुर्मास अथवा वर्षाकाल की समाप्ति के बाद होता है. इसकी शुरुआत तुलसी विवाह से होती है जिसमें विष्णुरूपी गन्ना का विवाह लक्ष्मीरूपी तुलसी के पौधे के साथ किया जाता था. अभी भी यह पर्व दीपावली के लगभग एक पखवाड़े के बाद मनाया जाता है.विवाह के रीति-रिवाज़ सगाई से शुरू हो जाते हैं. परंपरागत रूप से बहुत से विवाह संबंध वर और वधु के परिवार द्वारा तय किये जाते थे और लड़का-लड़की एक-दूसरे को प्रायः विवाह के दिन तक देख भी नहीं पाते थे. सगाई की यह रीति किसी मंदिर में आयोजित होती थी और इसमें दोनों पक्षों के बीच उपहारों का आदान-प्रदान होता था. आजकल पश्चिमी प्रभाव के कारण लोग दोस्तों की मौजूदगी में अंगूठियों की अदलाबदली करके ही सगाई कर लेते हैं.
सगाई और विवाह के बीच वर और वधु दोनों को उनके परिजन और मित्रादि भोजन आदि के लिए आमंत्रित करने लगते हैं क्योंकि बहुत जल्द ही वे दोनों एकल जीवन से मुक्त हो जायेंगे. यह मुख्यतः उत्तर भारत में संगीत की रस्म में होता था जो बॉलीवुड की कृपा से अब पूरे भारत में होने लगा है. संगीत की रस्म में परिवार की महिलायें नाचती-गाती हैं. यह सामान्यतः वधु के घर में होता है. लड़के को इसमें नहीं बुलाया जाता पर आजकल लड़के की माँ और बहनें वगैरह इसमें शामिल होने लगीं हैं.
विवाह की रस्में हल्दी-उबटन और मेहंदी से शुरू होती हैं. इसमें वर और वधु को विवाह के लिए आकर्षक निखार दिया जाता है. दोनों को हल्दी व चन्दन आदि का लेप लगाकर घर की महिलायें सुगन्धित जल से स्नान कराती हैं. इसका उद्देश्य यह है कि वे दोनों विवाह के दिन सबसे अलग व सुन्दर दिखें. इसके साथ ही इसमें विवाहोपरांत कायिक इच्छाओं की पूर्ति हो जाने की अभिस्वीकृति भी मिल जाती है. भारत में मेहंदी का आगमन अरब संपर्क से हुआ है. इसके पहले बहुसंख्यक हिन्दू आलता लगाकर अपने हाथ और पैरों को सुन्दर लाल रंग से रंगते थे. आजकल तरह-तरह की मेहंदी के प्रयोग से हाथों-पैरों पर अलंकरण किया जाने लगा है. वर और वधु के परिवार की महिलायें भी अपने को सजाने-संवारने में पीछे नहीं रहतीं.वर और वधु को तैयार करने के बाद उनसे कहा जाता है कि वे अपने-अपने पितरों-पुरखों का आह्वान करें. यह रस्म विशेषकर वधु के लिए अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि विवाह के बाद उसे अपने भावी पति के गोत्र में सम्मिलित होना है और अपने कुल की रीतियों को तिलांजलि देनी है.
सभी हिन्दू रीति-रिवाजों में मेहमाननवाज़ी पर बहुत जोर दिया जाता है. मेहमानों का यथोचित स्वागत किया जाता है, उनके चरण छूकर उन्हें नेग या उपहार दिए जाते हैं, और आदरपूर्वक उन्हें विदाई दी जाती है. पूजा के समय देवी-देवताओं को आमंत्रित किया जाता है, और विसर्जन के पहले भी उनकी पूजा होती है. उनसे निवेदन किया जाता है कि वे अगले वर्ष या अगले सुअवसर पर भी पधारें. विवाह के समय वर अतिथि होता है और हिन्दू परंपरा में अतिथियों को देवता का दर्जा दिया गया है. इसलिए उसका आदरसत्कार देवतातुल्य जानकार किया जाता है और उसे सबसे महत्वपूर्ण उपहार अर्थात वधु सौंप दी जाती है.
भारत के विभिन्न प्रदेशों में विवाह का समय अलग-अलग होता है. दक्षिण में विवाह की रस्में सूर्योदय के निकट पूरी की जाती हैं जबकि पूर्व में यह सब शाम के समय होता है. कागज़ की पोंगरी जैसी निमंत्रण पत्रिका वरपक्ष के घर भेजने के साथ ही विवाह की रस्मों की शुरुआत में तेजी आ जाती है. यह पत्रिका आमतौर पर वधु का भाई लेकर जाता है. ओडिशा में वधु के भाई को वर-धारा कहते हैं – वह, जो वर को घर तक लेकर आता है.
आमंत्रित अतिथिगण और वर का आगमन बारात के साथ होता है. राजपूत दूल्हे अपने साथ तलवार रखते हैं जो कभी-कभी उसकी भावी पत्नी द्वारा उसके लिए चुनी गयी होती है. इससे दो बातों का पता चलता है: यह कि पुरुष तलवार रखने के योग्य है और दूसरी यह कि वह अपनी स्त्री की रक्षा भी कर सकता है. उत्तर भारत में दूल्हे घोड़ी पर सवार होते हैं और उनका चेहरा सेहरे से ढंका होता है ताकि कोई उनपर बुरी नज़र न डाल सके. घोड़े के स्थान पर घोड़ी का प्रयोग यह दर्शाता है कि वह अपनी पत्नी को अपने अधीन रखना चाहता है. यह विचार भी आधुनिक महिलाओं को आपत्तिजनक लग सकता है. भारत के कई स्थानों में दूल्हे के साथियों को जमकर पीने और नाचने का मौका मिल जाता है. कई बाराती बड़े हुडदंगी होते हैं. वे पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती को बिहाने चले शिव की बारात के सदस्यों की तरह होते हैं. पीना और नाचना एकाकी जीवन की समाप्ति के अंतिम दिनों से पहले उड़ानेवाला मौजमजा है जो जल्द ही पत्नी और घर-गृहस्थी के खूंटे से बाँध दिया जाएगा और फिर उससे यह अपेक्षा नहीं की जायेगी कि वह चाहकर भी कभी मर्यादा तोड़ सके.
दूल्हे के ड्योढी पर आनेपर ससुर और सास उसे माला पहनाकर पूजते हैं. उसका मुंह मीठा किया जाता है, चरण पखारे जाते हैं. कई बार ससुर या उसका श्याला उसे अपनी बांहों में भरकर मंडप या स्टेज तक लेकर जाते हैं. इस बीच पंडित यज्ञवेदी पर अग्नि बढ़ाता है. पूरी प्रथा के दौरान अग्नि ही समस्त देवताओं का प्रतिनिधित्व करती है. वह स्त्री और पुरुष के सुमेल की साक्षी है.
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